यूपी विधान परिषद में बसपा जीरो, सपा को मिलेगा नेता प्रतिपक्ष की जिम्मेदारी - यूपी न्यूज़ एक्सप्रेस

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रविवार, 25 फ़रवरी 2024

यूपी विधान परिषद में बसपा जीरो, सपा को मिलेगा नेता प्रतिपक्ष की जिम्मेदारी

 यूपी विधान परिषद में बसपा जीरो, सपा को मिलेगा नेता प्रतिपक्ष की जिम्मेदारी


लखनऊ (स्टेट ब्यूरो)।
उत्तर प्रदेश में विधान परिषद की 5 मई को खाली हो रही 13 सीटों पर चुनाव का कार्यक्रम जारी हो गया है। 4 मार्च से नामांकन प्रक्रिया शुरू होगी और जरूरी हुआ तो 21 मार्च को मतदान होगा। खाली हो रही 13 सीटों में 11 ‌बीजेपी गठबंधन, एक बीएसपी और एक SP की है। विधानसभा में जो संख्या बल है उसके हिसाब से बीएसपी के लिए सीट बचाना तो दूर नामांकन करना भी संभव नहीं हो पाएगा। ऐसे में उसके शून्य पर पहुंचने के आसार बढ़ गए हैं। वहीं, एसपी को नेता प्रतिपक्ष का पद वापस मिल सकता है। परिषद की खाली हुई 13 सीटों के लिए प्रतिनिधि विधायक चुनेंगे। यूपी विधानसभा की मौजूदा सदस्य संख्या 399 है। इस हिसाब से एक सीट के लिए न्यूनतम 29 विधायकों की जरूरत होगी। बीएसपी के पास इस समय केवल एक विधायक है। जबकि, नामांकन के लिए भी प्रस्तावक के तौर पर 10 विधायकों की जरूरत होती है। ऐसे में पक्ष या विपक्ष में कोई मजबूत साथी नहीं मिला तो बीएसपी का शून्य होना तय है जबकि, कांग्रेस पहले ही परिषद में शून्य है। समाजवादी पार्टी के पास इस समय 108 विधायक हैं। कांग्रेस भी गठबंधन का हिस्सा है। उसके 2 विधायक मिलाकर संख्या 110 हो जाएगी। ऐसे में वह तीन सीटें आसानी से जीतने में सक्षम है। 23 विधायक अतिरिक्त हैं तो वह चौथी के लिए भी पर्चा भर सकती है। परिषद में स्वामी प्रसाद मौर्य के इस्तीफा देने के बाद एसपी के 8 सदस्य बचे हैं। 1 सीट मई में खाली होगी तो संख्या 7 रह जाएगी। चुनाव में एसपी 3 सीटें जीतने की स्थिति में है, इसलिए परिषद में संख्या बढ़कर 10 हो जाएगी। उच्च सदन में नेता प्रतिपक्ष का पद पाने के लिए कम से कम 10 सदस्य होना जरूरी है। चुनाव बाद दहाई में पहुंचते ही एसपी नेता प्रतिपक्ष के ओहदे के लिए दावा कर सकेगी। खाली हो रही सीटों में 10 ‌बीजेपी की और 1 उसके सहयोगी अपना दल की है। गठबंधन में ‌बीजेपी के साथ इस समय अपना दल, निषाद पार्टी व सुभासपा है। आरएलडी का भी आना तय है। इनको मिलाकर ‌बीजेपी गठबंधन के पास 286 वोट हैं। ऐसे में 9 सीटें उनके खाते में आनी तय है। 10 सीट पर दावे के लिए भी 25 वोट बचेंगे। लिहाजा इस पर भी उम्मीदवार उतारा जाना तय है। राजा भैया के जनसत्ता दल के दो विधायकों का रुख यहां अहम हो जाएगा। हालांकि, अब तक वह ‌बीजेपी का साथ देते रहे हैं।

9 या 10 सीटों पर उम्मीदवारी के दौरान ‌बीजेपी के सामने पार्टी के भीतर व सहयोगी दलों के समायोजन की चुनौती होगी। यशवंत सिंह, सरोजनी अग्रवाल और बुक्कल नवाब  से एमएलसी थे। ये तीनों इस्तीफा देकर ‌BJP में आए थे। इस 'त्याग' के बदले ‌BJP ने इन्हें फिर उच्च सदन भेज दिया था। प्रतिफल का सिलसिला आगे भी जारी रहेगा या नहीं, इस पर नजर रहेगी। अपना दल (एस) से आशीष पटेल का कार्यकाल खत्म हो रहा है। वह योगी सरकार में कैबिनेट मंत्री हैं। सरकार में बने रहने के लिए उनको सदन में बने रहना होगा। ऐसे में उनकी दोबारा दावेदारी के आसार अधिक हैं। एनडीए का हिस्सा बनने के बाद RLD की ओर से भी भागीदारी की मांग उठ सकती है। ‌BJP के सामने इन स्थितियों से संतुलन बनाने की चुनौती होगी। क्योंकि, एमएलसी चुनाव जब तक होंगे, तब तक लोकसभा चुनाव की घोषणा हो चुकी होगी। इसलिए, सहयोगी दल अधिक दबाव बनाने की स्थिति में होंगे। इनका कार्यकाल  जिसमे बीजेपी के यशवंत सिंह, विजय बहादुर पाठक, विद्या सागर सोनकर, सरोजनी अग्रवाल, अशोक कटारिया, अशोक धवन, बुक्कल नवाब, महेंद्र सिंह, मोहसिन रजा, निर्मला पासवान, अपना दल (एस) के आशीष पटेल, सपा के नरेश चंद्र उत्तम, बसपा के भीमराव अंबेडकर खत्म हो रहा हैं।

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