पावन चिंतन धारा आश्रम की नाट्य प्रस्तुति ‘कृष्ण’ से पहुँचा जन-जन तक श्री कृष्ण का संदेश! - यूपी न्यूज़ एक्सप्रेस

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रविवार, 7 अप्रैल 2024

पावन चिंतन धारा आश्रम की नाट्य प्रस्तुति ‘कृष्ण’ से पहुँचा जन-जन तक श्री कृष्ण का संदेश!

पावन चिंतन धारा आश्रम की नाट्य प्रस्तुति ‘कृष्ण’ से पहुँचा जन-जन तक श्री कृष्ण का संदेश!

नई दिल्ली:-विश्विख्यात राष्ट्रवादी विचारक, शिक्षाविद् और आध्यात्मिक गुरु प्रो. पवन सिन्हा 'गुरुजी' के निर्देशन में पावन चिंतन धारा आश्रम के सांस्कृतिक प्रकल्प ‘परिवर्तन’ द्वारा श्री राम सेंटर, मंडी हाउस, नई दिल्ली  में  आज श्रीकृष्ण’ नामक नाटिका का मंचन किया गया। 
इस अवसर पर भारतीय ज्ञान शोध संस्थान की निदेशक डॉ. कविता अस्थाना ‘गुरु माँ’ ने नाट्य प्रस्तुति का सूत्रपात करते हुए बताया कि विगत एक दशक से भी अधिक वर्षों से पावन चिंतन धारा आश्रम स्वप्नदृष्टा एवं आश्रम के संस्थापक परमपूज्य प्रो. पवन सिन्हा 'गुरुजी' सनातन धर्म के वैज्ञानिक स्वरूप को आधार बना भारतीय संस्कृति और सभ्यता के उन्नयन के लिए कार्य कर रहे हैं। गुरु मां ने दर्शकों को बताया कि आश्रम के जो बच्चे आज की नाट्य प्रस्तुति करेंगे वे कोई प्रोफेशनल थिएटर आर्टिस्ट नहीं हैं लेकिन उन्हें मांजने, परिष्कृत करने का कार्य किया श्री गुरुजी प्रोफ़ेसर पवन सिन्हा जी ने। श्री गुरुजी ने अपने जीवन उद्देश्य को अपने गुरुदेव स्वामी विवेकानंद जी के उद्देश्य से मिला लिया है। जो स्वयं में समर्पण की पराकाष्ठा है। डॉ. कविता अस्थाना जी ने कहा मनुष्य जीवन केवल सफलता के लिए ही नहीं है ? जीवन में क्रांति की मशाल जरूरी है। आश्रम का नारा है - परिवर्तित हो परिर्वतन करो। परिवर्तन प्रकल्प अपने धर्म, इतिहास और संस्कृति को जानने का माध्यम है। आश्रम के कलाकार आज हम सभी को कृष्ण का यथार्थ रूप बताने आ रहे हैं।आज की प्रस्तुति में वच्चों, युवाओं के द्वंद्व भी तिरोहित होंगे। श्री गुरुजी की गेरुआ ऊर्जा से स्पंदित बच्चे और प्रस्तुति को देश व्यापी मुहिम बनाने का दायित्व हम सभी का दायित्व है। 

राष्ट्र देवो भव’ के प्रति आस्थावान और कर्मबद्ध, भारतीय संस्कृति और सनातन धर्म के पुरोधा परमपूज्य प्रो. पवन सिन्हा 'गुरुजी' दिल्ली विश्वविद्यालय में प्रोफेसर हैं। श्रीगुरूजी ने अपने संभाषण में कहा कि भारत एक महान भूमि है जहां बहुत श्रेष्ठ कर्म करने के बाद भगवान स्थापित हुए। जिस व्यक्ति ने अपने प्राणों की आहुति दे दी हो, नाना प्रकार के कष्ट सहे हों आज उन्हीं कृष्ण को न जाने लोग किस किस नाम से पुकारते हैं! श्रीकृष्ण ने अधर्म का विनाश करने के लिए स्वयं को आगे रखा। श्रीकृष्ण द्वारिका में महाराजा उग्रसेन के प्रतिनिधित्व करते रहे। श्रीकृष्ण को पढ़ें। हिंदू संस्कृति, सनातन संस्कृति कर्म की संस्कृति है। आह्वान किया कि सभी धर्म को पढ़ें। शास्त्र पढ़ें। भारत की भूमि कला, युद्ध और संस्कृति की भूमि है। धर्म की बातें नहीं की जाती केवल, धर्म के कार्य किया जाता है।
इस नाट्य प्रस्तुति में जीवन-जगत से जुड़े सार्थक प्रश्नों के उत्तर भी दिये गए, जैसे – श्रेष्ठ कर्म, कष्ट, जीवन और मृत्यु का चक्र, भक्ति आदि। इसके अतिरिक्त नाट्य प्रस्तुति में क्रोध-प्रबंधन, एकाग्रता, व्यक्तित्व विकास और आध्यात्मिक विकास के तरीके भी बताए गए। 
युवा पीढ़ी को ज्ञान, आत्मविश्वास और साहस के साथ जीवन की जटिलताओं से निपटने में सक्षम बनाकर उन्हें सशक्त बनाने के एकमात्र लक्ष्य को लेकर प्रस्तुत की नाटिका अपने उद्देश्यों में सफल रही। 

‘मनुष्य अपना कर्म इतनी कुशलता से करे कि मैं भी आने पर विवश हो जाऊँ!’ ‘मेरे वास्तविक रूप को जो भजता है, वह महान है, ज्ञानी है।’ ‘योगः कर्मसु कौशलम्‌।’ अर्थात कर्म की कुशलता ही योग है! जीवन के अनेक महत्वपूर्ण सूत्र देते हुए श्रीकृष्ण के जीवन और संदेशों पर आधारित इस नाट्यप्रस्तुति में मानव मात्र के कल्याण का मार्ग प्रशस्त किया गया। प्राय: श्री कृष्ण को भजने वाले, उनकी भक्ति करने वालों को यह दुख रहता है कि कृष्ण उन्हें याद नहीं करते, उनकी बात नहीं सुनते। इस नाट्य प्रस्तुति में कृष्ण भक्तों सभी की इस पीड़ा का भी निवारण किया गया और कहा गया कि जो व्यक्ति ईश्वर को सम्पूर्ण निश्छल भाव से पुकारता है, अपने मन की बात कहता है, ईश्वर तक उनकी बात अवश्य पहुँचती है। बस हमारे भाव और कर्म श्रेष्ठ होने चाहिए। ‘तदेजति तन्नैजति तद् दूरे तद्वन्तिके। तदन्तरस्य सर्वस्य तदु सर्वस्यास्य बाह्यतः ॥’अर्थात ईश्वर गतिमान है और गतिहीन भी; वह दूर है और पास भी है; इस सबके भीतर है और इस सबके बाहर भी है इसलिए स्वयं पर विश्वास करो ईश्वर पर स्वतः ही विश्वास हो जाएगा। नाट्य प्रस्तुति में भगवान श्री कृष्ण के बचपन के प्रसंग और 11 वर्ष के बाद उनकी शिक्षा-दीक्षा, प्रशिक्षण तथा संपूर्ण 125 वर्ष के जीवन को भी साकार किया गया। 
नाट्य प्रस्तुति में यह दर्शाया गया कि श्री कृष्ण कितने बड़े पराक्रमी योद्धा रहे थे, वे बहुत कर्तव्य पारायण भी थे तभी उन्होंने धर्म की स्थापना के लिए अपने ही रक्त संबंधों की आहुति देने में तनिक मात्र भी संकोच नहीं किया। कितना कष्ट रहा होगा? कितनी पीड़ा रही होगी? लेकिन धर्म सर्वोपरि है!  धर्म किसी भी रिश्ते से ऊपर होता है।
श्रीक़ृष्ण ने भी वैसे ही कर्म किए, तप किए और संघर्षों से भरे पथ से अपने जीवन को श्रेष्ठ बनाया! परिवर्तन प्रकल्प के कलाकारों ने समाज को यह संदेश दिया कि हमें श्रीक़ृष्ण से यह सीखने की आवश्यकता है कि समस्त प्रकार के संघर्षों के उपरांत भी हँसते हुए धर्म के पथ पर कैसे चला जा सकता है। 
ज्ञानी जो श्रीकृष्ण के वास्तविक रूप को जानकर, उन्हें भजता है। नाट्य प्रस्तुति में एक महत्वपूर्ण जीवन सूत्र भी दिया गया कि मनुष्य स्वयं अपना मित्र है और स्वयं ही अपना शत्रु भी। इस प्रकार विवेक और तर्क बुद्धि से उचित निर्णय लेते हुए मानव अपना कल्याण स्वयं  करता है। श्रीक़ृष्ण के संपूर्ण जीवन के प्रसंगों का उल्लेख करते हुए आत्मा, श्रेष्ठ कर्म और सृष्टि के संरक्षण का संदेश दिया गया। युवाओं और मानव मात्र की प्रेरणा योगेश्वर कृष्ण को जानना आवश्यक है।
कार्यक्रम में इस नाट्य प्रस्तुति में चेतना संस्था के प्रधान राजेश चेतन , हेमंत अग्रवाल, सुप्रीम कोर्ट के रजिस्ट्रार  प्रदीप कुमार शर्मा, श्रीमती मंजू चौधरी एवं अन्य गणमान्य अतिथियों की गरिमामय उपस्थिति रही। पावन चिंतन धारा आश्रम के परिवर्तन प्रकल्प के कलाकार सुहानी, प्रेशा, अन्वी, अभिषेक, श्रेयस, देवब्रत ने अपने संवादों और अभिनय से दर्शक दीर्घा में उपस्थित सभी सुधिजनों को उनके प्रश्नों के उत्तर दिए। नाट्य प्रस्तुति में  कलाकारों की रूप सज्जा में अवनी, आरुषि, ओस, आकांक्षा ने अपना सहयोग दिया। 
नाट्य प्रस्तुति की अनेक समितियों के सदस्य, पावन प्रोडक्शन के सभी सदस्यों ने अपना योगदान दिया। कलाकारों के अभिभावकों का योगदान सराहनीय रहा। 
दिल्ली और देश के अलग-अलग हिस्सों से आए दर्शकों ने श्रीक़ृष्ण के योगेश्वर स्वरूप और उनकी जीवन की पीड़ाओं को गहराई भी समझा। श्रीकृष्ण का संघर्षमय जीवन और उनके जीवन से मिलने वाली शिक्षाएँ, संदेश भारत के बच्चों और युवा पीढ़ी के लिए बहुत प्रेरणादायी हैं। संवेदनाओं से भरी नाट्य प्रस्तुति ने सामान्य जन मानस पर अपना प्रभाव छोड़ा और श्रेष्ठ कर्म करने की प्रेरणा दी।

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