कोचिंग सेंटरों को माफिया करार करके प्रतिबन्ध की जरूरत -डॉ प्रियंका सौरभ
देश भर में नियम विरुद्ध कोचिंग सेंटरों का धड़ल्ले से संचालन हो रहा है। सरकार ने कोचिंग संस्थान चलाने के लिए कोई ठोस बिल या नियम तक नहीं बना रखे हैं, बिना कानून के संचालित अधिकतर कोचिंग क्लासेस मामूली नियमों को ताक में रखकर मनमर्जी से मोटी फीस वसूल कर सेंटरों का संचालन कर रहे हैं। इतना ही नहीं इन कोचिंग सेंटरों का जाल अब ग्रामीण क्षेत्रों तक फैल चुका है। ये छात्रों को बिना पूरी सुविधा दिए मोटी फीस वसूल रहे हैं। छात्रों के जीवन से खिलवाड़ को देखते हुए भी देश भर में शिक्षा विभाग के जिम्मेदार अधिकारी मौन बैठे हैं। यह उनकी कार्यप्रणाली को संदेह के घेरे में डाल देता है। लाभकारी शिक्षा उद्योग के उदय के साथ, कुछ संस्थानों ने अपनी कोचिंग सेवाओं के लिए अत्यधिक दरों की मांग करना शुरू कर दिया है। इससे शिक्षा का व्यावसायीकरण हो गया है, जहां छात्रों के कल्याण से ऊपर मुनाफे को प्राथमिकता दी जाती है। जैसे-जैसे शिक्षा अधिक विपणन योग्य हो गई है, वैसे-वैसे घटिया कोचिंग सेंटर भी बढ़ गए हैं, जिनमें से ज्यादातर अपने शिक्षार्थियों को फायदे की बजाय नुकसान अधिक पहुंचार रहें हैं।
आजकल हम आये रोज परीक्षाओं के लिए कोचिंग करने वाले छात्रों द्वारा आत्महत्या के बढ़ते मामलों को सुनते है। जैसे ही छात्र आत्महत्या बढ़ती है, हमारी सरकारें कोचिंग माफिया को शिक्षा ऋण के बोझ के लिए जिम्मेदार ठहराते हैं। माता-पिता पर शैक्षिक ऋण का बोझ छात्रों के बीच तनाव के कारणों में से एक है। और इसके लिए केंद्र को एक नीति बनानी चाहिए ताकि माता-पिता को शिक्षा के लिए पैसे उधार न लेना पड़े। कोचिंग संस्थान सस्ते नहीं हैं, और इनकी फीस माता-पिता, विशेषकर कम आय वाले परिवारों पर काफी वित्तीय बोझ हो सकती है। फीस के अलावा, अध्ययन सामग्री, परिवहन और आवास के लिए भारी अतिरिक्त शुल्क हो सकता है। माता-पिता को कोचिंग के खर्चों को कवर करने के लिए ऋण लेने के लिए भी मजबूर होना पड़ता है। यह वित्तीय भार तनाव और चिंता उत्पन्न कर सकता है और कई परिवारों के लिए यथार्थवादी नहीं हो सकता है। कोचिंग संस्थान केवल पैसा इकट्ठा करने में रुचि रखते हैं। इसलिए कोचिंग सेंटरों को माफिया करार करके सरकार को उनके खिलाफ कड़ी कार्रवाई करनी होगी।
जब हम बच्चे थे तो कोई कोचिंग नहीं होती थी। क्या तब छात्र आईएएस, आईपीएस नहीं बन रहे थे? कोचिंग के नाम पर आज के दौर में माफिया उपजे है और सरकार को इनके खिलाफ सख्त कार्रवाई करनी होगी। गहराई से और विश्लेषणात्मक रूप से देखा जाए तो यह राष्ट्रीय संसाधनों का शुद्ध दुरुपयोग बन गया है। जो छात्र शैक्षणिक उपलब्धि के लिए पूरी तरह से कोचिंग सेंटरों पर निर्भर हैं, वे लंबी अवधि में सफल होने के लिए आवश्यक कौशल और ज्ञान का निर्माण करने में विफल हो सकते हैं। वे नियंत्रित सीखने के माहौल और कोचिंग सेंटर द्वारा दिए जाने वाले व्यक्तिगत ध्यान पर बहुत अधिक निर्भर हो सकते हैं, जिससे आत्मविश्वास और पहल की कमी हो सकती है।
क्योंकि प्रतिस्पर्धा परीक्षाओं के लिए कोचिंग के घोषित बुनियादी उद्देश्य सर्वश्रेष्ठ उम्मीदवारों के चयन की पूर्ति नहीं करते। कोचिंग सेंटर न होने पर भी सर्वश्रेष्ठ छात्रों का चयन किया जाएगा। वास्तव में कोचिंग सेंटरों की अनुपस्थिति में सर्वश्रेष्ठ छात्रों का चयन अधिक वास्तविक होगा। क्योंकि यह स्व- अध्ययन और कच्ची प्रतिभा पर आधारित होगा। कोचिंग सेंटर आंशिक रूप से देश में शिक्षा के गैर समाज पैटर्न का उत्पादन है। कोचिंग सेंटर अक्सर रटने और याददाश्त पर अधिक जोर देते हैं, जो एक छात्र के दीर्घकालिक शैक्षणिक विकास के लिए हानिकारक हो सकता है। परीक्षा-उन्मुख सीखने और निरंतर परीक्षण पर जोर देने से आलोचनात्मक सोच, रचनात्मकता और समस्या-समाधान क्षमताओं की उपेक्षा हो सकती है। जो छात्र मुख्य रूप से कोचिंग सेंटरों पर निर्भर रहते हैं, वे जो सीखा है उसका विश्लेषण, मूल्यांकन और वास्तविक जीवन में लागू करने का कौशल हासिल नहीं कर पाते हैं।