यथा दृष्टि तथा सृष्टि - आनंदश्री
- जैसा नजरिया होगा वैसे ही नज़ारे होंगे।
महाभारत की एक कथा बहुत ही प्रसिद्ध है। एक बार आचार्य द्रोण ने वैचारिक प्रगति और व्यावहारिकता की परीक्षा लेने के लिए दुर्योधन और युधिष्ठिर दोनों को पास बुलाया।आचार्य द्रोण ने ने राजकुमार दुर्योधन से समाज में से एक अच्छे आदमी की परख करके उनके सामने लाने को कहा।वहीं युधिष्ठिर से कि इस धरती पर से कोई बुरा आदमी खोजकर लाओ। न तो दुर्योधन को कोई अच्छा आदमी मिला और न ही युधिष्ठिर को कोई बुरा आदमी। सभी राजकुमारों को बहुत आश्चर्य हुआ कि दोनों को कोई भी ऐसा व्यक्ति क्यों नहीं मिला।
- हम जैसे है वैसे ही दुनिया है
आपका चश्मा जैसा होगा वैसा ही इस दुनिया को आप देखोगे। एक गिलास में आधा जल भरा हो तो कोई यह सोचेगा कि यह आधा भरा है और वहीं कोई दूसरा उसे आधा खाली गिलास समझेगा। यही वह सोच है जिससे कि एक व्यक्ति को गिलास आधा खाली नजर आता है तो दूसरे को आधा भरा।
- यथा दृष्टि तथा सृष्टि
आप की दृष्टि ही इस दुनिया का निर्माण करती है। और आप अपने नजरिये का निर्माण करते है।
मेरे कई सेमिनार में मैने पाया की समस्या समस्या में नही सिर्फ नजरिये में है। नजरिया बदलते हो तुरंत नज़ारे बदल जाते हैं।
- अलर्ट रहे, सतर्क रहें
हमेशा अपने नज़रिये के प्रति सावधान रहे। आपके पास एक मशीन है जिससे आपको पता चलेगा कि आप अभी नकारात्मक में है या सकारात्मक में। वह है आपकी - भावना - । भावना आपको तुरंत फीडबैक देगी। भावना विचारो से निर्मित होती है। अपने विचारो को सकारात्मक रखिये और अभ्यास से यह संभव है।